कविता

जन्म-कुंडली – कुंवर नारायण की कविता

Published by
Kunwar Narayan

फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने
ओस के बारे में सोचा है–

किरणों की नोकों से ठहराकर
ज्योति-बिन्दु फूलों पर
किस ज्योतिर्विद ने
इस जगमग खगोल की
जटिल जन्म-कुंडली बनायी है?

फिर क्यों निःश्लेष किया
अलंकरण पर भर में?
एक से शून्य तक
किसकी यह ज्यामितिक सनकी जमुहाई है?

और फिर उनको भी सोचा है–
वृक्षों के तले पड़े
फटे-चिटे पत्ते—–
उनकी अंकगणित में
कैसी यह उधेडबुन?

हवा कुछ गिनती हैः
गिरे हुए पत्तों को कहीं से उठाती
और कहीं पर रखती है।
कभी कुछ पत्तों को डालों से तोड़कर
यों ही फेंक देती है मरोड़कर…।

कभी-कभी फैलाकर नया पृष्ठ–अंतरिक्ष-
गोदती चली जाती…वृक्ष…वृक्ष…वृक्ष

759
Published by
Kunwar Narayan