याद के ख़ुशनुमा जज़ीरों मेंदिल की आवारगी सी रहती है
हर एक रात के पहलू से दिन निकलता हैवो लोग कैसे सँवर जाएँ जो तबाह नहीं
माह तलअत ज़ाहिदी के शेर