कविता

तुम – सुभद्राकुमारी चौहान की कविता

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Subhadra Kumari Chauhan

जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो,
है जीवन में जीवन।
कोई नहीं छीन सकता
तुमको मुझसे मेरे धन॥

आओ मेरे हृदय-कुंज में
निर्भय करो विहार।
सदा बंद रखूँगी
मैं अपने अंतर का द्वार॥

नहीं लांछना की लपटें
प्रिय तुम तक जाने पाएँगीं।
पीड़ित करने तुम्हें
वेदनाएं न वहाँ आएँगीं॥

अपने उच्छ्वासों से मिश्रित
कर आँसू की बूँद।
शीतल कर दूँगी तुम प्रियतम
सोना आँखें मूँद॥

जगने पर पीना छक-छककर
मेरी मदिरा की प्याली।
एक बूँद भी शेष
न रहने देना करना खाली॥

नशा उतर जाए फिर भी
बाकी रह जाए खुमारी।
रह जाए लाली आँखों में
स्मृतियाँ प्यारी-प्यारी॥

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