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भेड़ियों के ढंग – उदयभानु ‘हंस’ की कविता

Published by
Uday Bhanu Hans

देखिये कैसे बदलती आज दुनिया रंग
आदमी की शक्ल, सूरत, आचरण में भेड़ियों के ढंग।

द्रौपदी फिर लुट रही है दिन दहाड़े
मौन पांडव देखते है आंख फाड़े
हो गया है सत्य अंधा, न्याय बहरा, और धर्म अपंग।

नीव पर ही तो शिखर का रथ चलेगा
जड़ नहीं तो तरु भला कैसे फलेगा
देखना आकाश में कब तक उड़ेगा, डोर–हीन पतंग।

डगमगती नाव में पानी भरा है
सिरफिरा तूफान भी जिद पर अड़ा है
और मध्यप नाविकों में छिड़ गई अधिकार की है जंग।

शब्द की गंगा दुहाई दे रही है
युग–दशा भी पुनः करवट ले रही है
स्वाभिमानी लेखनी का शील कोई कर न पाए भंग।

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Uday Bhanu Hans