नज़्म

कनकव्वा बन जाऊँ – अफ़सर मेरठी की नज़्म

Published by
Afsar Merathi

तारा सा लहराऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ
जब अम्माँ तुम आओ
छत को ख़ाली पाओ
चुप की चुप राह जाओ
सारे में ढुंडवाओ
फिर भी मैं तो न आऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ
डोर को जब तुम पाओ
खींचो और खिंचवाओ
और हँसती भी जाओ
और फिर मुझ को बुलाओ
तब मैं घर में आऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ

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Afsar Merathi