तारा सा लहराऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ
जब अम्माँ तुम आओ
छत को ख़ाली पाओ
चुप की चुप राह जाओ
सारे में ढुंडवाओ
फिर भी मैं तो न आऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ
डोर को जब तुम पाओ
खींचो और खिंचवाओ
और हँसती भी जाओ
और फिर मुझ को बुलाओ
तब मैं घर में आऊँ
कनकव्वा बन जाऊँ