उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो तुम तन्हा रह जाओगे
इस से बढ़ कर कोई इनआम-ए-हुनर क्या है ‘फ़राज़’
अपने ही अहद में एक शख़्स फ़साना बन जाए
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
जिस सम्त भी देखूँ नज़र आता है कि तुम हो
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है कि तुम हो
जुज़ तिरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे
हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
किसी दुश्मन का कोई तीर न पहुँचा मुझ तक
देखना अब के मिरा दोस्त कमाँ खेंचता है
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर ख़बर
चलो ‘फ़राज़’ को ऐ यार चल के देखते हैं
हुजूम ऐसा कि राहें नज़र नहीं आतीं
नसीब ऐसा कि अब तक तो क़ाफ़िला न हुआ
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गए आईना दिखा के मुझे