शेर

ताबिश देहलवी के चुनिंदा शेर

Published by
Tabish Dehlvi

छोटी पड़ती है अना की चादर
पाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है


अभी हैं क़ुर्ब के कुछ और मरहले बाक़ी
कि तुझ को पा के हमें फिर तिरी तमन्ना है


शाहों की बंदगी में सर भी नहीं झुकाया
तेरे लिए सरापा आदाब हो गए हम


आईना जब भी रू-ब-रू आया
अपना चेहरा छुपा लिया हम ने


ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
क़तरे में मुहीत लाख क़ुल्ज़ुम


ताबिश देहलवी के शेर

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Tabish Dehlvi