शेर

अहमद फ़राज़ के चुनिंदा शेर

Published by
Ahmad Faraz

ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का ‘फ़राज़’
ज़ालिम अब के भी न रोएगा तो मर जाएगा


दिल का दुख जाना तो दिल का मसअला है पर हमें
उस का हँस देना हमारे हाल पर अच्छा लगा


जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमाँ हों कि क्यूँ दिल का कहा माना नहीं


यूँही मौसम की अदा देख के याद आया है
किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसाँ जानाँ


देखा मुझे तो तर्क-ए-तअल्लुक़ के बावजूद
वो मुस्कुरा दिया ये हुनर भी उसी का था


हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग
ये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है


हो दूर इस तरह कि तिरा ग़म जुदा न हो
पास आ तो यूँ कि जैसे कभी तू मिला न हो


तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला


आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें


दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए
याद-ए-जानाँ से कोई शाम न ख़ाली जाए


956

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17

Published by
Ahmad Faraz