शेर

अम्बर बहराईची के चुनिंदा शेर

Published by
Ambar Bahraichi

ये सच है रंग बदलता था वो हर इक लम्हा
मगर वही तो बहुत कामयाब चेहरा था


मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत
मैं चेहरों के जंगल का सन्नाटा हूँ


जाने क्या सोच के फिर इन को रिहाई दे दी
हम ने अब के भी परिंदों को तह-ए-दाम किया


हर इक नदी से कड़ी प्यास ले के वो गुज़रा
ये और बात कि वो ख़ुद भी एक दरिया था


बाहर सारे मैदाँ जीत चुका था वो
घर लौटा तो पल भर में ही टूटा था


इक शफ़्फ़ाफ़ तबीअत वाला सहराई
शहर में रह कर किस दर्जा चालाक हुआ


जान देने का हुनर हर शख़्स को आता नहीं
सोहनी के हाथ में कच्चा घड़ा था देखते


आम के पेड़ों के सारे फल सुनहरे हो गए
इस बरस भी रास्ता क्यूँ रो रहा था देखते


चेहरों पे ज़र-पोश अंधेरे फैले हैं
अब जीने के ढंग बड़े ही महँगे हैं


जाने क्या बरसा था रात चराग़ों से
भोर समय सूरज भी पानी पानी है


796

Page: 1 2

Published by
Ambar Bahraichi