कविता

अवशेषी स्मृतियों का तर्पण

Published by
Anjana Tandon

जिस तरह
हवन की वेदी में धधक कर
यौवन के दिन याद करती हैं
आम और नीम की उम्रदराज़ लकड़ियाँ

जिस तरह
कपड़ों की पुरानी पोटली में बँधी
रंग उड़ी जामुनी लहरिया याद करती है
अपना मुस्कराता पहला सावनी उत्सव

उसी तरह
हरिद्वार के घाट पर से बहाया हुआ वो
अस्थिकलश
मझदार में पहुँच कर याद करता है
देह के जंगल से पार
किसी का मन में उतरना…

सच है
अवशेषी स्मृतियों के लिए कोई मणिकर्णिका घाट नहीं होता…

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Anjana Tandon