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गर लौटना – अंजना टंडन की कविता

Published by
Anjana Tandon

मन की ग्लानि का पुख़्ता सबूत
अहम् के दायरे में छिपा रहा
तुम्हें गला ना सका
गलने के लिए
पिघलना ज़रूरी था
और
चुक गया था
तुम्हारी
माचिसों का मसाला
जानते हो ना
भरी हुई आँख की रगड़
दरअसल
चिंगारी की तड़प है
जिरह के अंत तक भी
गर सुनाई दे गई
एक निर्दोष अश्रुपूरित कलकल
तो
चले आना सपाट
खोल रखूँगी कपाट
जैसे
किसी अर्थी को विदा कर
गंगोत्री के छींट के बाद
पवित्र हो देह चली आती है
किसी विश्वास के भीतर…

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Anjana Tandon