Categories: कविता

बारिश – अनुपमा विन्ध्यवासिनी की कविता

Published by
Anupma Vindhyavasini

बारिश!
पुनः प्रतीक्षा की बेला के पार
तुम लौट आई हो
असीम शांति धारण किए हुए…
तुम्हारे बरसने के शोर में
समाया है
समूची प्रकृति का सन्नाटा…
तुम्हीं तो रचती हो
सम्पूर्ण संसार की नवीनता…
ऊँचे देवदार के वृक्षों से लेकर
नन्हीं घासों की कोरों तक
फूस की झोपड़ियों से लेकर
कंक्रीट की दीवारों तक
सबके हृदयों को
नम कर जाती हो तुम…
तुम्हारे बरसने से सब कुछ
लगता है कितना
पूर्ण और तृप्त
सुकून से भरा…
बारिश!
तुम्हारा आना, प्रकृति को
हरीतिमा से भर देता है
और
तुम्हारा जाना, सृष्टि को
भीतर तक ख़ाली कर देता है…

Published by
Anupma Vindhyavasini