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पढ़ी लिखी लड़कियाँ – अनुराधा अनन्या की कविता

Published by
Anuradha Ananya

लड़कियाँ पढ़-लिख गई
तमाम सरकारी योजनाओं ने सफलता पाई
गैरसरकारी संस्थाओं के आँकड़े चमके
पिताओं ने पुण्य कमाया और
भाईयों ने बराबरी का दर्जा देने की सन्तुष्टि हासिल की

पढ़ी लिखी लड़कियाँ
चुका रही हैं क़ीमत एहसानों की
भुगत रही हैं शर्तें
जो पढ़ाई के एवज़ में रखी गई थीं

आज़ादी के थोड़े से साल जो जिए थे हॉस्टल में ली गई छूट से उनको सहेजने की, जी तोड़ मेहनत की
उच्च शिक्षा ली
ताक़ि कुछ कमाएँ धमाएँ और शादी के एक दो साल और टल जाएँ
एम ए, बीएड लड़कियाँ ब्याही जाती रहीं और
एक कमाऊ ग़ुलाम के हासिल पर
इतराए रहे निकम्मे पूत

काम आ रही हैं
पढ़ी लिखी लड़कियाँ
बच्चों को पढ़ाने में
महफिलों को सजाने में
चमड़ी गलाकर दमड़ी कमाने में

भोग रहे हैं असली सुख उनके हुनर का अलग-अलग भूमिकाओं के शासक
लड़कियाँ इस बात को बखूबी समझ रही हैं

आज़ादी का चस्का क्या है
बता रही हैं अलग-अलग पीढ़ियों को
और तैयार कर रही हैं आज़ाद नस्लों को
तमाम मुश्किलों के बावजूद
ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने पढ़ा है आज़ादी के आंदोलनों का इतिहास
वे जान रही हैं
कि कैसे रची जाती हैं योजनाएँ संगठनों में किसी मिशन को कामयाब बनाने के लिये।

Published by
Anuradha Ananya