कविता

सामूहिक स्नान में औरतें

Published by
Anuradha Ananya

पानी में उतर रही हैं औरतें
पानी की तरह ही दिख रही हैं उनकी देह
बिल्कुल पारदर्शी
अपनी देह के साथ पूरी-पूरी आज़ाद औरतें
बिना किसी शर्म के, बिना किसी गर्व के

एक-दूसरे का हाथ पकड़े
गोल घेरे में
फूल की व्यवस्थित पत्तियों की तरह
डूबकी लगातीं, तैरती जा रही हैं लहरों के साथ

जीवित औरतें पानी की गोल जलतरंगों-सी
आपसी तालमेल से रच रही हैं मधुर संगीत

कितना जीवंत दृश्य है
इस मटमैले-से पानी का

अंदरूनी रंग थे आत्माओं के
जो जकड़े गए थे
उभर आए हैं कैनवास पर
अपना पानी पाते ही
अब साझे संयोजन से
सुंदर बना रहे हैं दृश्य को

कितने मूर्ख हैं वो जो क़ैद कर रहे थे इनको
और जिन्हें नज़र नहीं आए
इन आज़ाद तरंगों के संगठन।

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Anuradha Ananya