loader image

एक तिनका – हरिऔध की कविता

मैं घमण्डों में भरा ऐंठा हुआ
एक दिन जब था मुण्डेरे पर खड़ा
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा
लाल होकर आँख भी दुखने लगी
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे
ऐंठ बेचारी दबे पाँवों भगी

जब किसी ढब से निकल तिनका गया
तब ‘समझ’ ने यों मुझे ताने दिए
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा
एक तिनका है बहुत तेरे लिए

Add Comment

By: Ayodhya Singh Upadhyay (Hariaudh)

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!