दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है
पैमाने दो हैं गर्दिश-ए-पैमाना एक है
पीता हूँ घूँट घूँट में साँसों के साथ साथ
साक़ी का और उम्र का पैमाना एक है
जिस अश्क में हो अश्क-ए-नदामत वही है अश्क
मोती बहुत हैं गौहर-ए-यक-दाना एक है
कसरत की शान और है वहदत का रंग और
आबाद है जो एक तो वीराना एक है
तफ़रीक़ हुस्न-ए-शमा-ओ-गुल में ज़रा नहीं
सोज़-ओ-गुदाज़-ए-बुल्बुल-ओ-परवाना एक है
जब सुन लिया फ़िराक़ का क़िस्सा तो कह दिया
मजनूँ का और आप का अफ़्साना एक है
तुम को अगर है अपनी दिल-आराइयों पे नाज़
‘कैफ़ी’ भी अपने नाम का मस्ताना एक है