शेर

दाग़ देहलवी के चुनिंदा शेर

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Dagh Dehlvi

हमारी तरफ़ अब वो कम देखते हैं
वो नज़रें नहीं जिन को हम देखते हैं


जिस जगह बैठे मिरा चर्चा किया
ख़ुद हुए रुस्वा मुझे रुस्वा किया


होश ओ हवास ओ ताब ओ तवाँ ‘दाग़’ जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया


सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
तुम्हें क़सम है हमारे सर की हमारे हक़ में कमी न करना


वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
दोस्त दुनिया में नहिं ‘दाग़’ से बेहतर अपना


इस वहम में वो ‘दाग़’ को मरने नहीं देते
माशूक़ न मिल जाए कहीं ज़ेर-ए-ज़मीं और


मैं भी हैरान हूँ ऐ ‘दाग़’ कि ये बात है क्या
वादा वो करते हैं आता है तबस्सुम मुझ को


रह गए लाखों कलेजा थाम कर
आँख जिस जानिब तुम्हारी उठ गई


उज़्र उन की ज़बान से निकला
तीर गोया कमान से निकला


वो दिन गए कि ‘दाग़’ थी हर दम बुतों की याद
पढ़ते हैं पाँच वक़्त की अब तो नमाज़ हम


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