शेर

दाग़ देहलवी के चुनिंदा शेर

Published by
Dagh Dehlvi

अयादत को मिरी आ कर वो ये ताकीद करते हैं
तुझे हम मार डालेंगे नहीं तो जल्द अच्छा हो


आईना देख के ये देख सँवरने वाले
तुझ पे बेजा तो नहीं मरते ये मरने वाले


इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है
हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं


पूछिए मय-कशों से लुत्फ़-ए-शराब
ये मज़ा पाक-बाज़ क्या जानें


जाओ भी क्या करोगे मेहर-ओ-वफ़ा
बार-हा आज़मा के देख लिया


तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं
तुझे हर बहाने से हम देखते हैं


ज़ीस्त से तंग हो ऐ ‘दाग़’ तो जीते क्यूँ हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं


ज़ालिम ने क्या निकाली रफ़्तार रफ़्ता रफ़्ता
इस चाल पर चलेगी तलवार रफ़्ता रफ़्ता


दिल क्या मिलाओगे कि हमें हो गया यक़ीं
तुम से तो ख़ाक में भी मिलाया न जाएगा


वाइज़ बड़ा मज़ा हो अगर यूँ अज़ाब हो
दोज़ख़ में पाँव हाथ में जाम-ए-शराब हो


991

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20

Published by
Dagh Dehlvi