कविता

तुम्हारा प्यार – किशोर काबरा की कविता

Published by
Kishor Kabra

मोर पंखी आँख में
दुबका हुआ
शिशु सा तुम्हारा प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है
दृष्टि का आँचल पकड़कर
मचलता है
बून्द बन कर उछलता है
फर्श गीला हो गया है
तर्क से
कटता कहाँ
बस, झेलता है
दूब के मानिन्द
दिन दिन फैलता है
कुछ गँठीला
कुछ कँटीला
हो गया प्यार
कुछ ऐसा हठीला हो गया है।

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Kishor Kabra