शेर

एहसान दरबंगावी के चुनिंदा शेर

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Ehsan Darbhangavi

शौक़ के मुम्किनात को दोनों ही आज़मा चुके
तुम भी फ़रेब खा चुके हम भी फ़रेब खा चुके


बड़ी मुश्किलों से काटा बड़े कर्ब से गुज़ारा
तिरे ब’अद कोई लम्हा जो मिला कभी ख़ुशी का


तुम इस तरफ़ से गुज़र चुकी हो मगर गली गुनगुना रही है
तुम्हारी पाज़ेब का वो नग़्मा फ़ज़ा में अब तक खनक रहा है


शायद अभी बाक़ी है कुछ आग मोहब्बत की
माज़ी की चिताओं से उठता है धुआँ ‘एहसाँ’


नज़र आती है सारी काएनात-ए-मै-कदा रौशन
ये किस के साग़र-ए-रंगीं से फूटी है किरन साक़ी


एहसान दरबंगावी के शेर

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Ehsan Darbhangavi