तुम्हारी याद निकलती नहीं मिरे दिल से
नशा छलकता नहीं है शराब से बाहर
बदलते वक़्त ने बदले मिज़ाज भी कैसे
तिरी अदा भी गई मेरा बाँकपन भी गया
जिन को छू कर कितने ‘ज़ैदी’ अपनी जान गँवा बैठे
मेरे अहद की शहनाज़ों के जिस्म बड़े ज़हरीले थे
उसी ने चाँद के पहलू में इक चराग़ रखा
उसी ने दश्त के ज़र्रों को आफ़्ताब किया
गुज़रा मिरे क़रीब से वो इस अदा के साथ
रस्ते को छू के जिस तरह रस्ता गुज़र गया
ज़िंदगी अब तू मुझे और खिलौने ला दे
ऐसे ख़्वाबों से तो मैं दिल नहीं बहला सकता
तेरी गली के मोड़ पे पहुँचे थे जल्द हम
पर तेरे घर को आते हुए देर हो गई
किन दरीचों के चराग़ों से हमें निस्बत थी
कि अभी जल नहीं पाए कि बुझाए गए हम
फिर वही शाम वही दर्द वही अपना जुनूँ
जाने क्या याद थी वो जिस को भुलाए गए हम
तमाम उम्र हवा की तरह गुज़ारी है
अगर हुए भी कहीं तो कभू कभू हुए हम