शेर

जावेद अख़्तर के चुनिंदा शेर

Published by
Javed Akhtar

मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है


थीं सजी हसरतें दुकानों पर
ज़िंदगी के अजीब मेले थे


है पाश पाश मगर फिर भी मुस्कुराता है
वो चेहरा जैसे हो टूटे हुए खिलौने का


ख़ून से सींची है मैं ने जो ज़मीं मर मर के
वो ज़मीं एक सितम-गर ने कहा उस की है


मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है
मगर भुलाना भी चाहूँ तो किस तरह भूलूँ


पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत
पैरों की बे-ताबियाँ पानी के अंदर देखिए


कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए
क्या समाई थी भला दीवाने के सर देखिए


जावेद अख़्तर के चुनिंदा शेर

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