Categories: कविता

केवल एक बात थी

Published by
Kirti Chaudhary

केवल एक बात थी
कितनी आवृत्ति
विविध रूप में करके तुमसे कही

फिर भी हर क्षण
कह लेने के बाद
कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही

उमग-उमग भावों की
सरिता यों अनचाहे
शब्द-कूल से परे सदा ही बही

सागर मेरे ! फिर भी
इसकी सीमा-परिणति
सदा तुम्हीं ने भुज भर गही, गही ।

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Kirti Chaudhary