loader image

कीड़े – कमला दास की कविता

साँझ ढले, नदी के तट पर
कृष्ण ने आख़िरी बार उसे प्रेम किया
और चले गए फिर उसे छोड़कर

उस रात अपने पति की बाँहों में
ऐसी निष्चेष्ट पड़ी थी राधा
कि जब उसने पूछा
‘क्या परेशानी है?
क्या बुरा लग रहा है तुम्हें मेरा चूमना, मेरा प्रेम’

तो उसने कहा
‘नहीं…बिल्कुल नहीं’

लेकिन सोचा —
‘क्या फ़र्क पड़ता है किसी लाश को
किसी कीड़े के काटने से!’

698

Add Comment

By: Kamala Das (Madhavikutty)

© 2022 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!