दोस्तों ने ये गुल खिलाया था
हाथ दुश्मन से जा मिलाया था
आस्तीनों में साँप पाले थे
दूध ख़ुद ही उन्हें पिलाया था
ज़ख़्म कारी बहुत लगा दिल पर
तीर अपनों ने इक चलाया था
बर्क़ माँगी नहीं फ़लक तुझ से
हम ने ख़िर्मन को ख़ुद जलाया था
दिल को ज़ख़्मों से चूर होना था
इश्क़ की राह पर चलाया था
पूछते हो धुआँ हैं क्यूँ आँखें
जाँ की बस्ती में दिल जलाया था
मैं तो भूला नहीं ‘सहाब’ उस को
उस ने कैसे मुझे भुलाया था