आईना दिल का तोड़ के कहता है संग-ज़नदिल तेरा तोड़ कर मुझे अच्छा नहीं लगा
ज़ख़्म कारी बहुत लगा दिल परतीर अपनों ने इक चलाया था
लईक़ अकबर सहाब के शेर