शेर

निदा फ़ाज़ली के चुनिंदा शेर

Published by
Nida Fazli

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समुंदर मेरा


जितनी बुरी कही जाती है उतनी बुरी नहीं है दुनिया
बच्चों के स्कूल में शायद तुम से मिली नहीं है दुनिया


यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो


अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले


मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न दे
वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी


बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है


कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती


हर तरफ़ हर जगह बे-शुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी


बहुत मुश्किल है बंजारा-मिज़ाजी
सलीक़ा चाहिए आवारगी में


वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए
जहाँ से देखिए कुछ कम है क्या किया जाए


639

Page: 1 2 3 4 5 6 7 8

Published by
Nida Fazli