loader image

दफ़्तरीय कविताएं – शैल चतुर्वेदी की कविता

बड़ा बाबू?
पट जाये तो ठीक
वर्ना बेकाबू।

बड़े बाबू का
छोटे बाबू से
इस बात को लेकर
हो गया झगड़ा
कि छोटे ने
बड़े की अपेक्षा
साहब को
ज़्यादा मक्खन क्यों रगड़ा।

इंस्पेक्शन के समय
मुफ़्त की मुर्ग़ी ने
दिखाया वो कमाल
कि मुर्गी के साथ-साथ
बड़े साहब भी तो गये हलाल।

कलेक्टर रोल दिखाने के लिये
बड़े साहब को देकर
अपना क़ीमती पैन
जब छोटे साहब ने
जेब मे पैन ठूँसते हुये कहा-
“तुम इतना भी नहीं समझता मैन!”

रिटायर होने के बाद
जब उन्होंने
अपनी ईमानदारी की कमाई
का हिसाब जोड़ा
तो बेलेंस में निकला
कैंसर का फोड़ा।

दफ़्तरीय कविताएं

598

Add Comment

By: Shail Chaturvedi

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!