कविता

मूल अधिकार – शैल चतुर्वेदी की कविता

Published by
Shail Chaturvedi

क्या कहा-चुनाव आ रहा है?
तो खडे हो जाइए
देश थोडा बहुत बचा है
उसे आप खाइए।
देखिये न,
लोग किस तरह खा रहे है
सड़के, पुल और फैक्ट्रियों तक को पचा रहे हैं
जब भी डकार लेते हैं
चुनाव हो जाता है
और बेचारा आदमी
नेताओ की भीड़ में खो जाता है।
संविधान की धाराओं को
स्वार्थ के गटर में
मिलाने का
हर प्रयास ज़ारी है
ख़ुशबू के तस्करों पर
चमन की ज़िम्मेदारी है।
सबको अपनी-अपनी पड़ी है
हर काली तस्वीर
सुनहरे फ्रेम में जड़ी है।
सारे काम अपने-आप हो रहे हैं
जिसकी अंटी मे गवाह है
उसके सारे खून
माफ़ हो रहे हैं
इंसानियत मर रही है
और राजनीति
सभ्यता के सफ़ेद कैनवास पर
आदमी के ख़ून से
हस्ताक्षर कर रही है।
मूल अधिकार?
बस वोट देना है
सो दिये जाओ
और गंगाजल के देश में
ज़हर पिये जाओ।

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Shail Chaturvedi