उठा ये शोर वहीं से सदाओं का क्यूँ-करवो आदमी तो सुना अपने घर में तन्हा था
वही दिया कि थीं आजिज़ हवाएँ जिन से ‘उमर’किसी के फिर न जलाए जला बुझा ऐसा
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