नज़्म

ईद – वफ़ा बराही की नज़्म

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Vafa Barahi

कहो ये मुग़न्नी से गाए चला जा
नवा-ए-मसर्रत सुनाए चला जा
मसर्रत के मुज़्दे को लाए चला जा
ज़माने को बे-ख़ुद बनाए चला जा
ज़माने पे छाई है ईद-ए-मसर्रत
दुल्हन बन के आई है ईद-ए-मसर्रत
मुनासिब है कुछ इंतिज़ाम-ए-मसर्रत
करूँ ख़ल्क़ को शाद-काम-ए-मसर्रत
लिए जाऊँ मैं दिल से नाम-ए-मसर्रत
सलाम-ए-मसर्रत कलाम-ए-मसर्रत
मसर्रत भी अपनी जगह झूमती है
क़दम ईद का अब ख़ुशी चूमती है
वतन की मोहब्बत के नग़्मे को गा कर
हरीफ़ों को अपने गले से लगा कर
मोहब्बत से ग़ैरों को क़ाबू में ला कर
जो रूठे हुए हैं उन्हें भी मना कर
मनाओ ख़ुशी ईद की रोज़ा-दारो
दिखाओ ख़ुशी ईद की रोज़ा-दारो

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Vafa Barahi