loader image

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए

हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

ग़लतियाँ बाबर की थी, जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए..

624

Add Comment

By: Ramnath Singh (Adam Gondvi)

© 2022 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!