पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ तो ये न समझ कि मेरी हस्ती बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा है तहक़ीर से यूँ न देख मुझको ऐ संगतराश! तेरा तेशा मुम्किन है कि ज़र्बे-अव्वली से पहचान सके कि मेरे दिल में जो आग तेरे लिए दबी है वो आग ही मेरी ज़िंदगी है
इज़्हार