लब तिश्न-ओ-नोमीद हैं हम अब के बरस भी
ऐ ठहरे हुए अब्रे-करम अब के बरस भी
कुछ भी हो गुलिस्ताँ में मगर कुंजे- चमन में
हैं दूर बहारों के क़दम अब के बरस भी
ऐ शेख़-करम! देख कि बा-वस्फ़े-चराग़ाँ
तीरा है दरो-बामे-हरम अब के बरस भी
ऐ दिले-ज़दगान मना ख़ैर, हैं नाज़ाँ
पिंदारे-ख़ुदाई पे सनम अब के बरस भी
पहले भी क़यामत थी सितमकारी-ए-अय्याम
हैं कुश्त-ए-ग़म कुश्त-ए-ग़म अब के बरस भी
लहराएँगे होंठों पे दिखावे के तबस्सुम
होगा ये नज़ारा कोई दम अब के बरस भी
हो जाएगा हर ज़ख़्मे-कुहन फिर से नुमायाँ
रोएगा लहू दीद-ए-नम अबके बरस भी
पहले की तरह होंगे तही जामे-सिफ़ाली
छलकेगा हर इक साग़रे-जम अब के बरस भी
मक़्तल में नज़र आएँगे पा-बस्त-ए-ज़ंजीर
अहले-ज़रे-अहले-क़लम अब के बरस भी