loader image

तीसरी पाली – अख़्तर राही की नज़्म

वो भी इक अच्छा मुसव्विर था
पिछले बल्वे में ही उस के
दोनों बाज़ू कट गए
और उस बल्वे में उस की
दोनों आँखें बुझ गईं
नूर-ए-फ़ितरत की सभी शक्लें मिटीं

बड़ी मुश्किल से उस अंधे मुसव्विर को
एक कमरा चाल में ही मिल गया
और पड़ोसन के वसीले से जवाँ बेटी को भी
कार-ख़ाने में सदा की तीसरी पाली मिली
अब वो माँ की गोद में रातों को सोती भी नहीं
माँग अफ़्शाँ चूड़ियों की ज़िद में रोती भी नहीं

460

Add Comment

By: Akhtar Rahi

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!