नज़्म

रब्त – अख़्तर राही की नज़्म

Published by
Akhtar Rahi

रूह के तहफ़्फ़ुज़ में
जिस्म कुचला जाता था
इक ज़माना ऐसा था

इक ज़माना ऐसा है
रूह कुचली जाती है
जिस्म के तहफ़्फ़ुज़ में

इक ज़माना आएगा
जिस्म जब सिपर होगा
रूह के तहफ़्फ़ुज़ में

रब्त

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Akhtar Rahi