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रब्त – अख़्तर राही की नज़्म

रूह के तहफ़्फ़ुज़ में
जिस्म कुचला जाता था
इक ज़माना ऐसा था

इक ज़माना ऐसा है
रूह कुचली जाती है
जिस्म के तहफ़्फ़ुज़ में

इक ज़माना आएगा
जिस्म जब सिपर होगा
रूह के तहफ़्फ़ुज़ में

रब्त

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By: Akhtar Rahi

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