शेर

अख़्तर शीरानी के चुनिंदा शेर

Published by
Akhtar Sheerani

चमन में रहने वालों से तो हम सहरा-नशीं अच्छे
बहार आ के चली जाती है वीरानी नहीं जाती


मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर
आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई


रात भर उन का तसव्वुर दिल को तड़पाता रहा
एक नक़्शा सामने आता रहा जाता रहा


वो अगर आ न सके मौत ही आई होती
हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता


ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए
वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए


इश्क़ को नग़्मा-ए-उम्मीद सुना दे आ कर
दिल की सोई हुई क़िस्मत को जगा दे आ कर


किसी मग़रूर के आगे हमारा सर नहीं झुकता
फ़क़ीरी में भी ‘अख़्तर’ ग़ैरत-ए-शाहाना रखते हैं


पलट सी गई है ज़माने की काया
नया साल आया नया साल आया


तमन्नाओं को ज़िंदा आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ
ये शर्मीली नज़र कह दे तो कुछ गुस्ताख़ियाँ कर लूँ


लॉन्ड्री खोली थी उस के इश्क़ में
पर वो कपड़े हम से धुलवाता नहीं


921

Page: 1 2 3 4 5

Published by
Akhtar Sheerani