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अख़्तर शीरानी के चुनिंदा शेर

अब वो बातें न वो रातें न मुलाक़ातें हैं
महफ़िलें ख़्वाब की सूरत हुईं वीराँ क्या क्या


किया है आने का वादा तो उस ने
मेरे परवरदिगार आए न आए


है क़यामत तिरे शबाब का रंग
रंग बदलेगा फिर ज़माने का


उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं
हाए वो रातें कि जो ख़्वाब-ए-परेशाँ हो गईं


किस को फ़ुर्सत थी ज़माने के सितम सहने की
गर न उस शोख़ की आँखों का इशारा होता


उस के अहद-ए-शबाब में जीना
जीने वालो तुम्हें हुआ क्या है


चमन वालों से मुझ सहरा-नशीं की बूद-ओ-बाश अच्छी
बहार आ कर चली जाती है वीरानी नहीं जाती


कूचा-ए-हुस्न छुटा तो हुए रुस्वा-ए-शराब
अपनी क़िस्मत में जो लिक्खी थी वो ख़्वारी न गई


सू-ए-कलकत्ता जो हम ब-दिल-ए-दीवाना चले
गुनगुनाते हुए इक शोख़ का अफ़्साना चले


पारसाई की जवाँ-मर्गी न पूछ
तौबा करनी थी कि बदली छा गई


अख़्तर शीरानी के शेर

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By: Akhtar Sheerani

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