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आत्ममिलन – अमृता प्रीतम की कविता

मेरी सेज हाज़िर है
पर जूते और कमीज़ की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढ़े पर रख दे
कोई खास बात नहीं
बस अपने अपने देश का रिवाज़ है……

आत्ममिलन

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By: Amrita Pritam

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