Categories: कविता

सरहद के किनारे से

Published by
Anuradha Ananya

तुम हर साल ख़ास मौसम में आते हो मुझ तक
और मैं भी एक ख़ास मौसम में हो आती हूँ तुम्हारी धरती पर
एक ही देश की सीमा में
नहीं तो तुम्हारे यहाँ का स्वर्ग मेरे सपनों में ही आता
तुम जानते हो इतना आसान भी नहीं होता
ग़रीब सैलानियों के लिए ये

तुम्हारी धरती नक़्शे के उसी शीर्ष पर है
जहाँ से हमारे आज़ाद देश की हद ख़त्म हो जाती है और जिसे सरहद कहा गया है
एक किनारे से बाँधी गई धरती में ही
तुम व्यस्त रहते हो असीम जीवन में
बुनते रहते हो ज़ाफ़रान के गलीचे
पहाड़ों की बुलंदी, कहवे की खुशबू, हवाओं की ताजगी
और करते रहते हो महीन कसीदेकारी
जीवन की

ख़ैर अब जब हम एक ही देश के वासी हैं
तो हमारा मिलना तय होता है
ख़ास मौसमों में
तुम अपने काँधे पर लादे मेवे, गर्म कपड़ों का गठ्ठड़
कपड़ों की तहों में
अपने बच्चों की शैतानी
तुम्हारी औरतों के दुआ सलाम
और ख़ुद को बचाए रखने के तमाम जतन
मुझ तक पहुंचा ही जाते हो एक लम्बे सफ़र के बाद

मैं बुनावटों में महसूसती रहती हूँ
तुम्हारी धरती की तस्वीर
तुम्हारे मेवों की गर्मी मुझे बताती है कि कैसे एक मुश्किल मौसम में
ज़िन्दा रहा जा सकता है

तुम्हारी आँखों से पता चल जाता है
कि सरहद के किनारे से हद के भीतर की धरती तक भी
तुम्हारा आना
किसी पहाड़ की चढ़ाई करने से ज्यादा कठिन होता है।
आने जाने की तमाम सुविधाओं के बावजूद!

Published by
Anuradha Ananya