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हम मिलते रहेंगे – अनुराधा अनन्या की कविता

जैसा कि तय था
हम मिलते हैं उतनी ही बेक़रारी से
जैसे तुम आये हो किसी दूसरे ही नक्षत्र से
अपने हमवतन दोस्तों के पास

अपने गर्म कपड़ों, मेवों के साथ
तुम ले आये अपनी पड़ोसन की कहानी अपनी ज़ुबान पर लाद कर जिसमें वो बोल रही है
कैसे उसने
ख़ुद को और अपने बच्चे को
गर्म सुर्ख़ियों से दूर रखा था
जो घर के सबसे सुरक्षित कमरे में
अपनी गोद में दूध पिला रही थी दुधमूहे को
कैसे एक भयानक धमाके को पता चल गया
उस कमरे का और फोड़ दिए गये उनके सिर
सुरक्षित छत के नीचे, सुरक्षित गोद में ही

तुम्हारी ज़बान से छलकता है उस बूढ़े का दर्द
जिसका जवान बेटा एक अर्से से ग़ायब है
जिसकी बच्ची के नामोंनिशाँ कोई जंगल नहीं जानता
कोई पहाड़, कोई पानी नहीं बताता
उसका पता

तुमने बताया अपने नौजवान दोस्त के बारे में
जो आया था तुम्हारे ही साथ इस सफ़र में
कैसे उसे भीड़ ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा
बिना किसी बहस के, बिना किसी झगड़े के
झगड़ा जो बहुत मामूली होता है तुम्हारे अनुभवों में अक्सर
जो किसी कपड़े, किसी मेवे के मोलतोल को लेकर
जिसे तुम सुनाते हो किसी लतीफ़े की तरह

हमेशा की तरह तुम्हारे ज़िक्र में आते हैं वो तमाम बच्चे
जो दुखों की ज़मीन पर ख़ुशनुमां पौधों से बड़े हो रहे हैं
अपने जानवरों के साथ संगीत रचते हैं
और रियाज़ करते हैं जंगलों में खुशियों के गीतों का
इस मुश्किल वक्त में भी
तुम्हारे हाथों भेजते हैं अपनी धरती की हरियाली, ताज़ा हवाएं और बुलावे
और तुम बार-बार आते हो
आस के संदेशे लिए
अपने हमवतन साथियों के पास
उस वादे को याद दिलाने
जिसमें तय हुआ था
ज़िन्दा रहने और रखने की ज़िद के साथ
हम मिलते रहेंगे
किसी ख़ास मौसम में
हर साल की तरह!

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By: Anuradha Ananya

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