उतरा ज्वार । जल मैला । लहरें गयीं क्षितिज के पार ।
काला सागर अन्धी आँखें फाड़ ताक रहा है गहन नीलिमा । बुझे हुए तारे कचपच-कचपच ढूँढ़ रहे हैं ठौर ।
मैं हूँ मैं हूँ यह दृश् ।
खोज रहा हूँ बंकिम चाँद क्षितिज किनारे मन में जो अदृश्य है ।