उतरा ज्वार।
जल
मैला।
लहरें
गयीं क्षितिज के पार।
काला सागर
अन्धी आँखें फाड़
ताक रहा है
गहन नीलिमा।
बुझे हुए तारे
कचपच-कचपच
ढूँढ़ रहे हैं
ठौर।
मैं हूँ मैं हूँ
यह दृश्।
खोज रहा हूँ
बंकिम चाँद
क्षितिज किनारे
मन में
जो अदृश्य है।
उतरा ज्वार।
जल
मैला।
लहरें
गयीं क्षितिज के पार।
काला सागर
अन्धी आँखें फाड़
ताक रहा है
गहन नीलिमा।
बुझे हुए तारे
कचपच-कचपच
ढूँढ़ रहे हैं
ठौर।
मैं हूँ मैं हूँ
यह दृश्।
खोज रहा हूँ
बंकिम चाँद
क्षितिज किनारे
मन में
जो अदृश्य है।
Do not copy, Please support by sharing!