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उतरा ज्वार – दूधनाथ सिंह की कविता

उतरा ज्वार ।
जल
मैला ।
लहरें
गयीं क्षितिज के पार ।

काला सागर
अन्धी आँखें फाड़
ताक रहा है
गहन नीलिमा ।
बुझे हुए तारे
कचपच-कचपच
ढूँढ़ रहे हैं
ठौर ।

मैं हूँ मैं हूँ
यह दृश् ।

खोज रहा हूँ
बंकिम चाँद
क्षितिज किनारे
मन में
जो अदृश्य है ।

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By: Doodhnath Singh

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