जैसा मैंने कहा किया वैसा ही
खोले दुख के अंग—
सभी कुछ घायल।
जीवन निरूपम मिला तुम्हें ओ,
किसने उसकी छाल उतारी
किया निर्वसन। छील-छाल कर
श्वेत रंग से दुहा ज़हर
ओ, दुहिता माता खड़ी भगवती
सब सिंगार सिधारे, धरती का
अवलम्ब लिए, कैसी हो
किसकी हो तुम नारी!
जिसकी चर्चा का विष-नगर
बिछाए, सारे मनु सारे कनु
चीख़ रहे हैं कामाख्या की
व्यथा–कथाएँ।