loader image

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो—
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

इस क़दर पाबन्दी-ए-मज़हब कि सदक़े आपके
जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

1003

Add Comment

By: Dushyant Kumar

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!