शेर

एहसान दानिश के चुनिंदा शेर

Published by
Ehsan Danish

हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
जी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे


न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है
मैं अब हर तसल्ली से घबरा रहा हूँ


कौन देता है मोहब्बत को परस्तिश का मक़ाम
तुम ये इंसाफ़ से सोचो तो दुआ दो हम को


कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
तोहमत तराशते हैं हवा के दबाव पर


ज़ख़्म पे ज़ख़्म खा के जी अपने लहू के घूँट पी
आह न कर लबों को सी इश्क़ है दिल-लगी नहीं


ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
पहले कम-बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए


लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे


‘एहसान’ ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
हम इस के बाद फिर कोई अरमाँ न कर सके


तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
वो शख़्स तो दुनिया में किसी का भी नहीं है


उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं
लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया


784

Page: 1 2 3 4

Published by
Ehsan Danish