Categories: ग़ज़ल

जब रेतीले हो जाते हैं

Published by
Fahmi Badayuni

जब रेतीले हो जाते हैं
पर्वत टीले हो जाते हैं

तोड़े जाते हैं जो शीशे
वो नोकीले हो जाते हैं

बाग़ धुएँ में रहता है तो
फल ज़हरीले हो जाते हैं

नादारी में आग़ोशों के
बंधन ढीले हो जाते हैं

फूलों को सुर्ख़ी देने में
पत्ते पीले हो जाते हैं

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Fahmi Badayuni