पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ारदेवता अपनी जगह और आदमी अपनी जगह
साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जाऐ मिरी जान-ए-आरज़ू तू यूँही मुस्कुराए जा
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